• 6
    中本ミサキ 2020/03/20 (金) 01:26:56

    ब्रह्माजी ने कहा ॥७२॥

    देवि! तुम्हीं स्वाहा, तुम्हीं स्वधा, तुम्हीं वषट्कार (पवित्र आहुति मन्त्र) हो। स्वर भी तुम्हारे ही स्वरूप हैं।
    तुम्हीं जीवदायिनी सुधा हो। नित्य अक्षर प्रणव में अकार, उकार, मकार - इन तीन अक्षरों के रूप में तुम्ही स्थित हो ॥७३॥

    तथा इन तीन अक्षरों के अतिरिक्त जो बिन्दुरूपा नित्य अर्धमात्रा है, जिसका विशेषरूप से उच्चारण नहीं किया जा सकता, वह भी तुम्ही हो।
    तुम्हीं सन्ध्या, तुम्हीं सावित्री (ऋकवेदोक्त पवित्र सावित्री मन्त्र), तुम्हीं समस्त देवीदेवताओं की जननी हो।
    (पाठान्तर : तुम्हीं सन्ध्या, तुम्हीं सावित्री, तुम्हीं वेद, तुम्हीं आदि जननी हो) ॥७४॥

    तुम्हीं इस विश्व ब्रह्माण्ड को धारण करती हो, तुमसे ही इस जगत की सृष्टि होती है।
    तुम्हीं सबका पालनहार हो, और सदा तुम्ही कल्प के अन्त में सबको अपना ग्रास बना लेती हो। ॥७५॥

    हे जगन्मयी देवि! इस जगत की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो और पालनकाल में स्थितिरूपा हो।
    हे जगन्मयी माँ! तुम कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करने वाली हो।॥७६॥

    तुम्हीं महाविद्या, तुम्हीं महामाया, तुम्हीं महामेधा, तुम्हीं महास्मृति हो
    तुम्हीं महामोहरूपा, महारूपा तथा महासुरी हो। ॥७७॥

    तुम्हीं तीनों गुणों को उत्पन्न करने वाली सबकी प्रकृति हो।
    भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो। ॥७८॥

    तुम्हीं श्री, तुम्हीं ईश्वरी, तुम्हीं ह्री और तुम्हीं बोधस्वरूपा बुद्धि हो।
    लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्हीं हो। ॥७९॥

    तुम खड्गधारिणी, घोर शूलधारिणी, तथा गदा और चक्र धारण करने वाली हो।
    तुम शंख धारण करने वाली, धनुष-वाण धारण करने वाली, तथा परिघ नामक अस्त्र धारण करती हो। ॥८०॥

    तुम सौम्य और सौम्यतर हो। इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य और सुन्दर पदार्थ हैं उन सबकी अपेक्षा तुम अधिक सुन्दर हो।
    पर और अपर - सबसे अलग रहने वाली परमेश्वरी तुम्हीं हो। ॥८१॥

    सर्वस्वरूपे देवि ! कहीं भी सत्-असत् रूप जो कुछ वस्तुएँ हैं और उनकी सबकी जो शक्ति है, वह भी तुम्हीं हो
    ऐसी स्थिति में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है?॥८२॥

    जो इस जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं उन भगवान को भी
    जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में कौन समर्थ हो सकता है? ॥८३॥

    मुझको, भगवान विष्णु को और भगवान शंकर को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है।
    अतः तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है?॥८४॥

    देवि! तुम तो अपने इन उदार प्रभावों से ही प्रशंसित हो।।
    ये जो दो दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इन दोनों को मोह लो। ॥८५॥

    जगत के स्वामी भगवान विष्णु को शीघ्र जगा दो।
    तथा इनके भीतर इन दोनों असुरों का वध करने की बुद्धि उत्पन्न कर दो। ॥८६

  • 7
    中本ミサキ 2020/03/20 (金) 01:27:10

    ब्रह्माजी ने कहा ॥७२॥

    देवि! तुम्हीं स्वाहा, तुम्हीं स्वधा, तुम्हीं वषट्कार (पवित्र आहुति मन्त्र) हो। स्वर भी तुम्हारे ही स्वरूप हैं।
    तुम्हीं जीवदायिनी सुधा हो। नित्य अक्षर प्रणव में अकार, उकार, मकार - इन तीन अक्षरों के रूप में तुम्ही स्थित हो ॥७३॥

    तथा इन तीन अक्षरों के अतिरिक्त जो बिन्दुरूपा नित्य अर्धमात्रा है, जिसका विशेषरूप से उच्चारण नहीं किया जा सकता, वह भी तुम्ही हो।
    तुम्हीं सन्ध्या, तुम्हीं सावित्री (ऋकवेदोक्त पवित्र सावित्री मन्त्र), तुम्हीं समस्त देवीदेवताओं की जननी हो।
    (पाठान्तर : तुम्हीं सन्ध्या, तुम्हीं सावित्री, तुम्हीं वेद, तुम्हीं आदि जननी हो) ॥७४॥

    तुम्हीं इस विश्व ब्रह्माण्ड को धारण करती हो, तुमसे ही इस जगत की सृष्टि होती है।
    तुम्हीं सबका पालनहार हो, और सदा तुम्ही कल्प के अन्त में सबको अपना ग्रास बना लेती हो। ॥७५॥

    हे जगन्मयी देवि! इस जगत की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो और पालनकाल में स्थितिरूपा हो।
    हे जगन्मयी माँ! तुम कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करने वाली हो।॥७६॥

    तुम्हीं महाविद्या, तुम्हीं महामाया, तुम्हीं महामेधा, तुम्हीं महास्मृति हो
    तुम्हीं महामोहरूपा, महारूपा तथा महासुरी हो। ॥७७॥

    तुम्हीं तीनों गुणों को उत्पन्न करने वाली सबकी प्रकृति हो।
    भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो। ॥७८॥

    तुम्हीं श्री, तुम्हीं ईश्वरी, तुम्हीं ह्री और तुम्हीं बोधस्वरूपा बुद्धि हो।
    लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्हीं हो। ॥७९॥

    तुम खड्गधारिणी, घोर शूलधारिणी, तथा गदा और चक्र धारण करने वाली हो।
    तुम शंख धारण करने वाली, धनुष-वाण धारण करने वाली, तथा परिघ नामक अस्त्र धारण करती हो। ॥८०॥

    तुम सौम्य और सौम्यतर हो। इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य और सुन्दर पदार्थ हैं उन सबकी अपेक्षा तुम अधिक सुन्दर हो।
    पर और अपर - सबसे अलग रहने वाली परमेश्वरी तुम्हीं हो। ॥८१॥

    सर्वस्वरूपे देवि ! कहीं भी सत्-असत् रूप जो कुछ वस्तुएँ हैं और उनकी सबकी जो शक्ति है, वह भी तुम्हीं हो
    ऐसी स्थिति में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है?॥८२॥

    जो इस जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं उन भगवान को भी
    जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में कौन समर्थ हो सकता है? ॥८३॥

    मुझको, भगवान विष्णु को और भगवान शंकर को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है।
    अतः तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है?॥८४॥

    देवि! तुम तो अपने इन उदार प्रभावों से ही प्रशंसित हो।।
    ये जो दो दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इन दोनों को मोह लो। ॥८५॥

    जगत के स्वामी भगवान विष्णु को शीघ्र जगा दो।
    तथा इनके भीतर इन दोनों असुरों का वध करने की बुद्धि उत्पन्न कर दो। ॥८६

  • 8
    中本ミサキ 2020/03/20 (金) 01:27:18

    ब्रह्माजी ने कहा ॥७२॥

    देवि! तुम्हीं स्वाहा, तुम्हीं स्वधा, तुम्हीं वषट्कार (पवित्र आहुति मन्त्र) हो। स्वर भी तुम्हारे ही स्वरूप हैं।
    तुम्हीं जीवदायिनी सुधा हो। नित्य अक्षर प्रणव में अकार, उकार, मकार - इन तीन अक्षरों के रूप में तुम्ही स्थित हो ॥७३॥

    तथा इन तीन अक्षरों के अतिरिक्त जो बिन्दुरूपा नित्य अर्धमात्रा है, जिसका विशेषरूप से उच्चारण नहीं किया जा सकता, वह भी तुम्ही हो।
    तुम्हीं सन्ध्या, तुम्हीं सावित्री (ऋकवेदोक्त पवित्र सावित्री मन्त्र), तुम्हीं समस्त देवीदेवताओं की जननी हो।
    (पाठान्तर : तुम्हीं सन्ध्या, तुम्हीं सावित्री, तुम्हीं वेद, तुम्हीं आदि जननी हो) ॥७४॥

    तुम्हीं इस विश्व ब्रह्माण्ड को धारण करती हो, तुमसे ही इस जगत की सृष्टि होती है।
    तुम्हीं सबका पालनहार हो, और सदा तुम्ही कल्प के अन्त में सबको अपना ग्रास बना लेती हो। ॥७५॥

    हे जगन्मयी देवि! इस जगत की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो और पालनकाल में स्थितिरूपा हो।
    हे जगन्मयी माँ! तुम कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करने वाली हो।॥७६॥

    तुम्हीं महाविद्या, तुम्हीं महामाया, तुम्हीं महामेधा, तुम्हीं महास्मृति हो
    तुम्हीं महामोहरूपा, महारूपा तथा महासुरी हो। ॥७७॥

    तुम्हीं तीनों गुणों को उत्पन्न करने वाली सबकी प्रकृति हो।
    भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो। ॥७८॥

    तुम्हीं श्री, तुम्हीं ईश्वरी, तुम्हीं ह्री और तुम्हीं बोधस्वरूपा बुद्धि हो।
    लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्हीं हो। ॥७९॥

    तुम खड्गधारिणी, घोर शूलधारिणी, तथा गदा और चक्र धारण करने वाली हो।
    तुम शंख धारण करने वाली, धनुष-वाण धारण करने वाली, तथा परिघ नामक अस्त्र धारण करती हो। ॥८०॥

    तुम सौम्य और सौम्यतर हो। इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य और सुन्दर पदार्थ हैं उन सबकी अपेक्षा तुम अधिक सुन्दर हो।
    पर और अपर - सबसे अलग रहने वाली परमेश्वरी तुम्हीं हो। ॥८१॥

    सर्वस्वरूपे देवि ! कहीं भी सत्-असत् रूप जो कुछ वस्तुएँ हैं और उनकी सबकी जो शक्ति है, वह भी तुम्हीं हो
    ऐसी स्थिति में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है?॥८२॥

    जो इस जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं उन भगवान को भी
    जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में कौन समर्थ हो सकता है? ॥८३॥

    मुझको, भगवान विष्णु को और भगवान शंकर को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है।
    अतः तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है?॥८४॥

    देवि! तुम तो अपने इन उदार प्रभावों से ही प्रशंसित हो।।
    ये जो दो दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इन दोनों को मोह लो। ॥८५॥

    जगत के स्वामी भगवान विष्णु को शीघ्र जगा दो।
    तथा इनके भीतर इन दोनों असुरों का वध करने की बुद्धि उत्पन्न कर दो। ॥८६

  • 9
    中本ミサキ 2020/03/20 (金) 01:27:27

    ब्रह्माजी ने कहा ॥७२॥

    देवि! तुम्हीं स्वाहा, तुम्हीं स्वधा, तुम्हीं वषट्कार (पवित्र आहुति मन्त्र) हो। स्वर भी तुम्हारे ही स्वरूप हैं।
    तुम्हीं जीवदायिनी सुधा हो। नित्य अक्षर प्रणव में अकार, उकार, मकार - इन तीन अक्षरों के रूप में तुम्ही स्थित हो ॥७३॥

    तथा इन तीन अक्षरों के अतिरिक्त जो बिन्दुरूपा नित्य अर्धमात्रा है, जिसका विशेषरूप से उच्चारण नहीं किया जा सकता, वह भी तुम्ही हो।
    तुम्हीं सन्ध्या, तुम्हीं सावित्री (ऋकवेदोक्त पवित्र सावित्री मन्त्र), तुम्हीं समस्त देवीदेवताओं की जननी हो।
    (पाठान्तर : तुम्हीं सन्ध्या, तुम्हीं सावित्री, तुम्हीं वेद, तुम्हीं आदि जननी हो) ॥७४॥

    तुम्हीं इस विश्व ब्रह्माण्ड को धारण करती हो, तुमसे ही इस जगत की सृष्टि होती है।
    तुम्हीं सबका पालनहार हो, और सदा तुम्ही कल्प के अन्त में सबको अपना ग्रास बना लेती हो। ॥७५॥

    हे जगन्मयी देवि! इस जगत की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो और पालनकाल में स्थितिरूपा हो।
    हे जगन्मयी माँ! तुम कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करने वाली हो।॥७६॥

    तुम्हीं महाविद्या, तुम्हीं महामाया, तुम्हीं महामेधा, तुम्हीं महास्मृति हो
    तुम्हीं महामोहरूपा, महारूपा तथा महासुरी हो। ॥७७॥

    तुम्हीं तीनों गुणों को उत्पन्न करने वाली सबकी प्रकृति हो।
    भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो। ॥७८॥

    तुम्हीं श्री, तुम्हीं ईश्वरी, तुम्हीं ह्री और तुम्हीं बोधस्वरूपा बुद्धि हो।
    लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्हीं हो। ॥७९॥

    तुम खड्गधारिणी, घोर शूलधारिणी, तथा गदा और चक्र धारण करने वाली हो।
    तुम शंख धारण करने वाली, धनुष-वाण धारण करने वाली, तथा परिघ नामक अस्त्र धारण करती हो। ॥८०॥

    तुम सौम्य और सौम्यतर हो। इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य और सुन्दर पदार्थ हैं उन सबकी अपेक्षा तुम अधिक सुन्दर हो।
    पर और अपर - सबसे अलग रहने वाली परमेश्वरी तुम्हीं हो। ॥८१॥

    सर्वस्वरूपे देवि ! कहीं भी सत्-असत् रूप जो कुछ वस्तुएँ हैं और उनकी सबकी जो शक्ति है, वह भी तुम्हीं हो
    ऐसी स्थिति में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है?॥८२॥

    जो इस जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं उन भगवान को भी
    जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में कौन समर्थ हो सकता है? ॥८३॥

    मुझको, भगवान विष्णु को और भगवान शंकर को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है।
    अतः तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है?॥८४॥

    देवि! तुम तो अपने इन उदार प्रभावों से ही प्रशंसित हो।।
    ये जो दो दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इन दोनों को मोह लो। ॥८५॥

    जगत के स्वामी भगवान विष्णु को शीघ्र जगा दो।
    तथा इनके भीतर इन दोनों असुरों का वध करने की बुद्धि उत्पन्न कर दो। ॥८६

  • 10
    中本ミサキ 2020/03/20 (金) 01:27:34

    ब्रह्माजी ने कहा ॥७२॥

    देवि! तुम्हीं स्वाहा, तुम्हीं स्वधा, तुम्हीं वषट्कार (पवित्र आहुति मन्त्र) हो। स्वर भी तुम्हारे ही स्वरूप हैं।
    तुम्हीं जीवदायिनी सुधा हो। नित्य अक्षर प्रणव में अकार, उकार, मकार - इन तीन अक्षरों के रूप में तुम्ही स्थित हो ॥७३॥

    तथा इन तीन अक्षरों के अतिरिक्त जो बिन्दुरूपा नित्य अर्धमात्रा है, जिसका विशेषरूप से उच्चारण नहीं किया जा सकता, वह भी तुम्ही हो।
    तुम्हीं सन्ध्या, तुम्हीं सावित्री (ऋकवेदोक्त पवित्र सावित्री मन्त्र), तुम्हीं समस्त देवीदेवताओं की जननी हो।
    (पाठान्तर : तुम्हीं सन्ध्या, तुम्हीं सावित्री, तुम्हीं वेद, तुम्हीं आदि जननी हो) ॥७४॥

    तुम्हीं इस विश्व ब्रह्माण्ड को धारण करती हो, तुमसे ही इस जगत की सृष्टि होती है।
    तुम्हीं सबका पालनहार हो, और सदा तुम्ही कल्प के अन्त में सबको अपना ग्रास बना लेती हो। ॥७५॥

    हे जगन्मयी देवि! इस जगत की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो और पालनकाल में स्थितिरूपा हो।
    हे जगन्मयी माँ! तुम कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करने वाली हो।॥७६॥

    तुम्हीं महाविद्या, तुम्हीं महामाया, तुम्हीं महामेधा, तुम्हीं महास्मृति हो
    तुम्हीं महामोहरूपा, महारूपा तथा महासुरी हो। ॥७७॥

    तुम्हीं तीनों गुणों को उत्पन्न करने वाली सबकी प्रकृति हो।
    भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो। ॥७८॥

    तुम्हीं श्री, तुम्हीं ईश्वरी, तुम्हीं ह्री और तुम्हीं बोधस्वरूपा बुद्धि हो।
    लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्हीं हो। ॥७९॥

    तुम खड्गधारिणी, घोर शूलधारिणी, तथा गदा और चक्र धारण करने वाली हो।
    तुम शंख धारण करने वाली, धनुष-वाण धारण करने वाली, तथा परिघ नामक अस्त्र धारण करती हो। ॥८०॥

    तुम सौम्य और सौम्यतर हो। इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य और सुन्दर पदार्थ हैं उन सबकी अपेक्षा तुम अधिक सुन्दर हो।
    पर और अपर - सबसे अलग रहने वाली परमेश्वरी तुम्हीं हो। ॥८१॥

    सर्वस्वरूपे देवि ! कहीं भी सत्-असत् रूप जो कुछ वस्तुएँ हैं और उनकी सबकी जो शक्ति है, वह भी तुम्हीं हो
    ऐसी स्थिति में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है?॥८२॥

    जो इस जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं उन भगवान को भी
    जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में कौन समर्थ हो सकता है? ॥८३॥

    मुझको, भगवान विष्णु को और भगवान शंकर को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है।
    अतः तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है?॥८४॥

    देवि! तुम तो अपने इन उदार प्रभावों से ही प्रशंसित हो।।
    ये जो दो दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इन दोनों को मोह लो। ॥८५॥

    जगत के स्वामी भगवान विष्णु को शीघ्र जगा दो।
    तथा इनके भीतर इन दोनों असुरों का वध करने की बुद्धि उत्पन्न कर दो। ॥८६

  • 11
    宵﨑ミロク 2021/06/02 (水) 09:20:18

    誰目線だよ

  • 12
    宵﨑ミロク 2021/06/02 (水) 09:20:31 修正

    人類はいつか

  • 13
    宵﨑ミロク 2021/06/02 (水) 09:21:59

    リソース管理の適当さ原因なのに「この惑星(ほし)は狭すぎたとか言い訳をして

  • 14
    宵﨑ミロク 2021/06/02 (水) 09:22:19

    また同じ星で繰り返すだけさ

  • 15
    宵﨑ミロク 2021/06/02 (水) 09:23:12

    地殻変動
    天変地異